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नई दिल्ली

वित्त वर्ष 2024-25 के लिए देश भर में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र, राज्य सरकार तथा निजी क्षेत्र की कोयला और लिग्नाइट खदानों की परतों की वार्षिक ग्रेड घोषणा

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नई दिल्ली @ ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ रही है और कोयला भारत की ऊर्जा सुरक्षा और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा देश में वाणिज्यिक ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत बना हुआ है। यह विश्वसनीय और स्थिर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करता है, जो औद्योगिक विकास को बनाए रखने, शहरीकरण को शक्ति देने के लिए महत्वपूर्ण है। कोयला मंत्रालय का अधीनस्थ कार्यालय, कोयला नियंत्रक संगठन (सीसीओ) कोयले के नमूने के लिए प्रक्रिया और मानक निर्धारित करता है; कोयले की श्रेणी, ग्रेड की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए कोयला खदानों का निरीक्षण करता है तथा कोलियरी नियंत्रण नियम, 2004 (2021 में संशोधित) के तहत एक कोलियरी में खनन किए गए कोयले की परत के कोयले के ग्रेड की घोषणा व रख-रखाव के उद्देश्य से निर्देश जारी करता है। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र, राज्य सरकार तथा निजी क्षेत्र की कोयला और लिग्नाइट खदानों की परतों के गुणवत्ता-डेटा की उपलब्धता निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के लिए सर्वोपरि है। कोयला नियंत्रक संगठन (सीसीओ), जिसके क्षेत्रीय कार्यालय धनबाद, रांची, बिलासपुर, नागपुर, संबलपुर और कोठागुडेम में हैं, ने वर्ष 2024-25 के लिए राज्य की केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों, राज्य सरकार तथा निजी क्षेत्र की कोयला और लिग्नाइट खदानों से कोयले के नमूने लेने और उसका विश्लेषण करने का कार्य किया। वार्षिक नमूनाकरण कार्य, सीपीएसयू (331), राज्य सरकार (69) और निजी क्षेत्र (27) की कुल 427 खदानों में किया गया। ग्रेड की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए, प्राप्त नमूनों का दो अलग-अलग प्रयोगशालाओं में विश्लेषण किया गया। निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार खदानों की परतों की वार्षिक ग्रेडिंग की घोषणा की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। सार्वजनिक क्षेत्र, राज्य सरकार तथा निजी क्षेत्र की सभी कोयला और लिग्नाइट खदानों की परतों का घोषित ग्रेड 01.04.2024 से प्रभावी होगा।

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नई दिल्ली

मोदी सरकार की नीतियों का असर, महिला बेरोजगारी दर में आई गिरावट

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नई दिल्ली  । देश में जनवरी से मार्च की अवधि के बीच महिला बेरोजगारी दर में बड़ी गिरावट हुई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा गुरुवार को जारी किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफस) से यह जानकारी मिली। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण में बताया गया कि 2024 की मार्च तिमाही में महिला बेरोजगारी दर घटकर 8.5 प्रतिशत रह गई है, जो कि पिछले साल समान अवधि में 9.2 प्रतिशत थी। इसके अलावा जनवरी से मार्च के बीच कुल बेरोजगारी दर में भी कमी देखने को मिली है। यह घटकर 6.7 प्रतिशत पर रह गई है, जो पहले 6.8 प्रतिशत थी।जनवरी से मार्च 2024 के बीच श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) बढ़कर 50.2 प्रतिशत हो गई है, जो कि पिछले वर्ष 48.5 प्रतिशत थी। महिला श्रम बल भागीदारी दर 2024 की मार्च तिमाही में बढ़कर 25.6 प्रतिशत हो गई है। पिछले साल मार्च तिमाही में यह 22.7 प्रतिशत थी। शहरी इलाकों में महिला श्रमिक जनसंख्या अनुपात भी 2024 की मार्च तिमाही में बढ़कर 23.4 प्रतिशत हो गया है, जो कि पिछले वर्ष समान अवधि में 20.6 प्रतिशत था। पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार की ओर से महिलाओं की संख्या श्रम भागीदारी में बढ़ाने को लेकर कई कदम उठाए गए हैं। मोदी सरकार द्वारा 2017 में मातृत्व छुट्टी के फायदे को 12 हफ्ते से बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया गया। वहीं, बच्चा गोद लेने वाली महिलाओं के लिए मातृत्व छुट्टी 12 हफ्तों की कर दी गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय कहा था कि इस कदम के जरिए सरकार की कोशिश है कि शिशु को जन्म के बाद एक अच्छी देखभाल मिले। 50 से ज्यादा कर्मचारी वाली संस्थाओं के लिए शिशुगृह बनाना अनिवार्य कर दिया गया। साथ ही वर्क फ्रॉम होम का भी प्रावधान सरकार द्वारा किया गया।सरकार ने नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भी नियमों में बदलाव किया है। अब नाइट शिफ्ट करने वाली महिलाओं को नियोक्ताओं द्वारा पिक-अप और ड्रॉप-ऑफ सुविधा उपलब्ध कराना जरूरी है।

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नई दिल्ली

उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्‍यापार विभाग द्वारा नई दिल्ली में ओएनडीसी स्टार्टअप महोत्सव आयोजित; डिजिटल कॉमर्स के लिए ओपन नेटवर्क का लाभ उठाने का प्‍लेटफॉर्म

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नई दिल्ली । उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने 17 मई 2024 को वाणिज्य भवन, नई दिल्ली में अपनी तरह का पहला कार्यक्रम ‘ओएनडीसी स्टार्टअप महोत्सव’ आयोजित किया। यह आयोजन डीपीआईआईटी की दो प्रमुख पहलों- स्टार्टअप इंडिया पहल और ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) के उत्‍सव और सहयोग का प्रतीक है।

उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) के सचिव श्री राजेश कुमार सिंह ने स्टार्टअप विकास और नवाचार के लिए इकोसिस्‍टम को विकसित करने और प्रोत्साहन के लिए सरकार की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “ओएनडीसी स्टार्टअप महोत्सव भारत में स्टार्टअप्स के लिए ओएनडीसी से प्राप्त अवसरों का लाभ उठाने का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। पिछले डेढ़ वर्षों में नेटवर्क तेजी से विकसित और परिपक्व हुआ है, और आज का सत्र भारत में डिजिटल कॉमर्स को लोकतांत्रिक बनाने के लिए डीपीआईआईटी और उद्योग दोनों की प्रतिबद्धता दिखाता है।

इस कार्यक्रम में हाइब्रिड मोड में लगभग 5,000 स्टार्टअप्स की भागीदारी हुई। इस दौरान स्टार्टअप्स, यूनिकॉर्न और ईजमाईट्रिप, ऑफबिजनेस, विंजो, लिवस्पेस, ग्लोबलबीज, प्रिस्टिन केयर, कार्स24, फिजिक्स वाला, पॉलिसीबाजार और ज़ेरोधा जैसे उच्च विकास व्यवसायों सहित 125 से अधिक इकोसिस्‍टम हितधारकों ने आशय पत्र (एलओआई) पर हस्ताक्षर किए। ये एलओआई ओएनडीसी की क्षमता और प्‍लेफार्म के साथ सहयोग करने के लिए देश के अग्रणी स्टार्टअप की उत्सुकता को दिखाते हैं।

डीपीआईआईटी के संयुक्त सचिव, श्री संजीव ने स्टार्टअप्स और ओएनडीसी के बीच निरंतर सहयोग के लिए सरकार के विज़न पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “स्टार्टअप नवाचार प्रोत्‍साहन, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देकर और उपभोक्ता की पसंद को बढ़ाकर ओएनडीसी इकोसिस्‍टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। आज के कार्यक्रम में 125 से अधिक स्टार्टअप्स ने ओएनडीसी नेटवर्क से जुड़ने की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की, जो राष्ट्रीय पहल के उत्साह और गति को दर्शाता है।”

ओएनडीसी के एमडी एवं सीईओ श्री. टी. कोशी ने कहा, “ओएनडीसी स्टार्टअप महोत्सव भारत की डिजिटल परिवर्तन यात्रा में एक महत्वपूर्ण क्षण है। हमारे इकोसिस्‍टम के भीतर सहयोग और नवाचार को बढ़ावा देकर हम ई-कॉमर्स में खेल के नियमों को फिर से परिभाषित करने के लिए स्टार्टअप को सशक्त बना रहे हैं।”

‘ओएनडीसी स्टार्टअप महोत्सव’ ओएनडीसी और स्टार्टअप इंडिया पहल के बीच एक विशिष्‍ट सहयोग है। प्लेटफ़ॉर्म से 5 लाख से अधिक विक्रेता जुड़े हुए हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत से अधिक छोटे या मझोले विक्रेता हैं। अप्रैल 2024 में ओएनडीसी ने लगभग 7.22 मिलियन लेनदेन की सुविधा प्रदान की। इसे साकार करने के लिए ‘ओएनडीसी स्टार्टअप महोत्सव’ का आयोजन किया गया। स्टार्टअप्स और ओएनडीसी के बीच प्रभावी सहयोग के साथ दोनों पहलों का समग्र विकास, बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था और आगे बढ़ने के विस्‍तृत अवसर खोल रहे हैं।

‘भारतीय ई-कॉमर्स के सहयोगात्मक भविष्य का निर्माण’, ‘ओएनडीसी- स्टार्टअप सफलता की कहानी’ और ‘ओएनडीसी के माध्यम से स्टार्टअप ग्रोथ को आगे बढ़ाना’ जैसे विषयों पर पैनल चर्चाएं आपसी सहयोग के क्षेत्रों और स्टार्टअप तथा उभरते व्यवसायों के लिए अपार संभावनाओं पर केंद्रित थीं ताकि ओएनडीसी के नेटवर्क का विस्तार किया जा सके। पैनल चर्चा के विशेष वक्‍ताओं में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के सदस्‍य श्री अनिल अग्रवाल, डीपीआईआईटी के संयुक्त सचिव श्री ई. श्रीनिवास, भारतीय गुणवत्ता परिषद के महासचिव श्री चक्रवर्ती टी कन्नन; ओएनडीसी की सलाहकार परिषद सदस्य श्रीमती अंजलि बंसल; डीएमडी, सिडबी के डीएमडी श्री सुदत्त मंडल; ईजमाईट्रिप के को-फाउंडर श्री रिकान्त पिट्टी तथा विंज़ो के सह-संस्थापक श्री पवन नंदा शामिल थे। ओएनडीसी के ऑन-बोर्डिंग और प्रभावी उपयोग के लिए स्टार्टअप्स को सहयोग व परामर्श देने के लिए ‘ओएनडीसी पर स्टार्टअप्स को सक्षम करने पर एक मास्टरक्लास’ भी आयोजित की गई थी।

सरकार ने उद्यमियों को समर्थन देने तथा देश में एक मजबूत स्टार्टअप इकोसिस्‍टम बनाने के लिए 16 जनवरी 2016 को स्टार्टअप इंडिया पहल लॉन्च की। वर्ष 2016 के लगभग 300 स्टार्टअप से आज भारत 1.3 लाख से अधिक डीपीआईआईटी मान्यता प्राप्त स्टार्टअप के साथ अग्रणी स्टार्टअप केंद्रों में से एक है। ये 55 से अधिक क्षेत्रों में काम कर रहे हैं और विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार ला रहे हैं। स्टार्टअप्स ने देश में 13 लाख से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियों का सृजन किया है।



सरकार की एक और विशिष्‍ट पहल में ओएनडीसी को डिजिटल वाणिज्य को लोकतांत्रिक बनाने के मिशन के साथ अपनी तरह के पहले प्रोटोकॉल के रूप में 2021 में लॉन्च किया गया था। आज, ओएनडीसी पूरे भारत में पूरी तरह से चालू है, डिजिटल अवसंरचना को पूरा कर लिया गया है और बड़े पैमाने पर व्यवसायों और जनता के लिए प्रस्‍तुत किया गया है। ओएनडीसी डिजिटल कॉमर्स में प्रवेश-बाधाओं को कम करता है और सभी ई-कॉमर्स प्रतिष्‍ठानों, विशेष रूप से छोटे पैमाने के व्यवसायों तथा डिजिटल रूप से बाहर किए गए लोगों के लिए समान अवसर प्रदान करता है। स्टार्टअप प्रतिस्पर्धी कीमतों पर अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद और सेवाएं प्रदान करने वाली चुस्त कार्य संस्कृति वाले नवप्रवर्तक हैं। देश में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को पाने के लिए स्टार्टअप एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। बाज़ार बनाना और खोजना स्टार्टअप्स के लिए एक चुनौती है जिसे ओएनडीसी प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से हल किया जा सकता है। यह सहयोग के महत्व पर बल देता है।

देश में पिछले कुछ वर्षों में उद्यमियों के लिए अनुकूल वातावरण बना है। सरकार ने स्वयं कई नवीन सुधार और पहल शुरू की हैं। ओएनडीसी ई-कॉमर्स को लोकतांत्रिक बनाने के लिए सरकार की एक ऐसी अभिनव पहल है, जो अब देश के स्टार्टअप इकोसिस्‍टम को और मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यह भव्य महोत्सव इस उपयोगी सहयोग को साकार करने की दिशा में प्रारंभ और पहला कदम है।

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नई दिल्ली

इस्पात मंत्रालय ने “इस्पात क्षेत्र में स्थिरता बनाने” पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया

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नई दिल्ली । इस्पात मंत्रालय ने आज विज्ञान भवन, नई दिल्ली में ” इस्पात क्षेत्र में स्थिरता स्थापित करने” पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला का उद्देश्य चुनौतियों को कम करने के लिए टिकाऊ प्रथाओं, उभरती प्रौद्योगिकियों और उपकरणों पर ध्यान केंद्रित करके इस्पात क्षेत्र के महत्वपूर्ण मुद्दों पर हितधारकों के साथ जुड़कर इस्पात उद्योग में टिकाऊ प्रथाओं को आगे बढ़ाना है। उद्घाटन सत्र में इस्पात मंत्रालय के सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) की सचिव सुश्री लीना नंदन, इस्पात मंत्रालय और पीएसयू के अधिकारी, विशेषज्ञ और इस्पात क्षेत्र के अन्य हितधारकों ने भाग लिया।

इस्पात मंत्रालय के सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा ने उद्घाटन सत्र को संबोधित किया और कहा कि इस्पात क्षेत्र की स्थिरता को संबोधित करने के लिए यह कार्यशाला एक महत्वपूर्ण पहल है और इस्पात मंत्रालय के एमओईएफसीसी और नीति आयोग सहित अन्य मंत्रालयों के साथ बातचीत की निरंतरता में है।  

बढ़ती मांग के बीच बढ़ते कार्बन उत्सर्जन की चुनौती को संबोधित करते हुए, श्री सिन्हा ने बताया कि भारत का प्रति टन कच्चे इस्पात का उत्सर्जन वैश्विक औसत से 25 प्रतिशत  अधिक है और यह अन्य बातों के अलावा, प्राकृतिक गैस की कमी, उपलब्ध लौह अयस्क की गुणवत्ता, जिसे डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन (डीआरआई) प्रक्रियाओं में उपयोग के लिए लाभकारी बनाने की आवश्यकता होती है और स्क्रैप की सीमित उपलब्धता, घरेलू स्क्रैप उत्पादन केवल 20-25 मिलियन टन है जैसे कारकों के कारण है।

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, श्री सिन्हा ने खान मंत्रालय और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक टास्क फोर्स के चल रहे प्रयासों का उल्लेख किया, जो इस्पात निर्माण के लिए निम्न-श्रेणी के लौह अयस्क की उपयुक्तता में सुधार करने के लिए इसको लाभकारी बनाने पर केंद्रित है। उन्होंने स्क्रैप उपलब्धता को प्रभावित करने वाले ऐतिहासिक कारकों पर भी चर्चा की और कहा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित ऑटो सेक्टर के लिए विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (ईपीआर) जैसी नीतियों का उद्देश्य वाहन स्क्रैप उपलब्धता बढ़ाना है, हालांकि औद्योगिक और निर्माण क्षेत्र में इस्पात की अधिक खपत जारी रहेगी।

इन चुनौतियों के बावजूद, कार्बन उत्सर्जन को उल्लेखनीय रूप से कम करने की सख्त जरूरत है। उन्होंने बताया कि स्टील बनाने में 90% उत्सर्जन स्कोप 1 (फैक्ट्री गेट के भीतर) से होता है, शेष उत्सर्जन स्कोप 2 (बिजली उत्पादन) और स्कोप 3 (अपस्ट्रीम प्रक्रियाओं) से होता है। इसलिए, उद्योग का अपने उत्सर्जन पर पर्याप्त नियंत्रण है और उसे इसे स्थिर करने की दिशा में सक्रिय कदम उठाने चाहिए।

श्री सिन्हा ने सभी संबंधित हितधारकों को प्रोत्साहित किया, “हालांकि मंत्रालय मार्गदर्शन और सलाह देता रहेगा, लेकिन यह जरूरी है कि इस्पात उद्योग उत्सर्जन को कम करने और स्थिरता को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने के लिए पृथ्वी के संरक्षक के रूप में जिम्मेदारी लें।”

इस्पात मंत्रालय के 14 कार्य बल

इस्पात उद्योग में स्थिरता के विभिन्न पहलुओं से निपटने के लिए इस्पात मंत्रालय द्वारा 14 टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जैसे सर्वोत्तम उपलब्ध प्रौद्योगिकी को अपना कर ऊर्जा दक्षता बढ़ाना, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना और उत्सर्जन को कम करने के लिए इनपुट तैयार करना। मंत्रालय हरित हाइड्रोजन और कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (सीसीयूएस) प्रौद्योगिकियों के उपयोग की भी खोज कर रहा है।

इस्पात निर्माण में पानी की खपत

इस्पात निर्माण में पानी की खपत सुधार के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में पहचाना गया। श्री सिन्हा ने कहा कि भारत में पानी की खपत का स्तर अन्य देशों की तुलना में अधिक है, इसे कम करने के प्रयास जारी हैं।

उन्होंने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा बिजनेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग फॉर्मेट की शुरुआत की भी सराहना की और कंपनियों से इसे गंभीरता से लेने का आग्रह किया। उन्होंने कंपनियों को अपनी वर्तमान स्थिरता प्रथाओं की रिपोर्ट करने और मध्यम अवधि के लक्ष्य निर्धारित करने की आवश्यकता पर जोर दिया, सुझाव दिया कि सीपीसीबी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे नियामक निकाय इस अभ्यास को प्रोत्साहित करते रहें।

अपशिष्ट उत्पादन और उसके प्रबंधन पर भी चर्चा की गई, जिसमें निर्माण समुच्चय में स्टील स्लैग के उपयोग और कृषि में मिट्टी संशोधक के रूप में उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया। श्री सिन्हा ने घोषणा की कि इन क्षेत्रों में चल रही परियोजनाओं के परिणाम जल्द ही जारी किए जाएंगे।

कार्बन की सीमांत उपशमन लागत

कार्यशाला में अनावरण किए गए उपकरणों में से एक, मार्जिनल एबेटमेंट कॉस्ट कर्व टूलकिट पर बोलते हुए, उन्होंने उल्लेख किया कि यह कंपनियों को कार्बन उत्सर्जन को मापने और कटौती प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता देने में सहायता करेगा। इस उपकरण के माध्यम से, कोई भी विभिन्न प्रकार की उत्सर्जन कम करने वाली प्रौद्योगिकियों, प्रक्रियाओं और विकल्पों को प्राथमिकता दे सकता है। उन्होंने इस उपकरण के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय मानकों और विनियमों को पूरा करने के लिए हर प्रक्रिया और प्रतिष्ठानों के लिए विशिष्ट उच्च गुणवत्ता वाले उत्सर्जन डेटा एकत्र करने के महत्व पर जोर दिया।उन्होंने हरित हाइड्रोजन-आधारित डीआरआई निर्माण पर मंत्रालय के काम पर प्रकाश डालते हुए सभी हितधारकों से सहयोग करने और सर्वोत्तम उपलब्ध तकनीकों को अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “मंत्रालय हरित हाइड्रोजन आधारित डीआरआई बनाने के इस मुद्दे को संभालने के लिए कंसोर्टियम के साथ काम कर रहा है, जहां लोहे को सीधे 100% हाइड्रोजन के साथ अपचयित किया जाएगा। यह तकनीक, हालांकि अभी  महंगी है, लेकिन यदि विकसित की जाए और सामूहिक रूप से अपनाई जाए तो यह एक स्थायी भविष्य का वादा करती है”। 

इस अवसर पर बोलते हुए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सचिव सुश्री लीना नंदन ने कहा कि “2030 के लिए भारत के अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) हमारी महत्वाकांक्षा को दर्शाते हैं, जिसके तहत हमारी 50% ऊर्जा गैर-जीवाश्म ईंधन से प्राप्त की जाएगी।” और हमारा लक्ष्य हमारी अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना है”। उन्होंने विचारों को कार्यवाई योग्य सहयोग में बदलने का आह्वान करते हुए इस बात पर जोर दिया कि इस्पात उद्योग के स्थिरता प्रयासों को जिम्मेदारी की गहरी भावना से जन्म लेना चाहिए।

एक दुनिया, एक परिवार और एक भविष्य की भावना में, उन्होंने भारत-स्वीडन औद्योगिक संक्रमण पहल जैसी प्रमुख पहलों पर प्रकाश डाला और परिपत्र अर्थव्यवस्था प्रथाओं के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने संसाधन दक्षता बढ़ाने के लिए वाहन स्क्रैपिंग नीति द्वारा समर्थित रिसाइकल स्टील के उपयोग को प्रोत्साहित किया। इसके अलावा, उन्होंने हरित हाइड्रोजन और कार्बन कैप्चर जैसे क्षेत्रों पर प्रकाश डाला, जहां अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस्पात उत्पादन को और अधिक टिकाऊ बनाने के लिए हरित हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ाने के लिए वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी के महत्व को रेखांकित किया।

कार्यशाला के शेष सत्रों में, मार्जिनल एबेटमेंट कॉस्ट कर्व्स (एमएसीसी) का लाभ उठाने और इस्पात क्षेत्र में विघटनकारी प्रौद्योगिकियों, ऊर्जा दक्षता, कार्बन बाजारों और उत्सर्जन की एआई-आधारित निगरानी पर जोर देने जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई।

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