भारत और ब्रिटेन के बीच इस साल FTA होगा फाइनल? क्या है इतिहास और क्यों है जरूरी? एक्सपर्ट से आसान भाषा में समझिए

भारत और ब्रिटेन के बीच FTA पर वार्ता की शुरुआत साल 2022 में हुई थी। हालांकि, कुछ कारणों की वजह से मार्च 2024 के बाद इसपर चर्चा बंद हो गई थी।

India UK FTA: भारत और ब्रिटेन के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत की सुगबुगाहट एक बार फिर होने लगी है। लंबे समय से दोनों देश इसपर बात तो कर रहे हैं, लेकिन किसी अंतिम निर्णय तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। अब तक दोनों देशों के बीच 10 से अधिक बार इसपर द्विपक्षीय वार्ता हो चुकी है। मीडिया रिपोर्ट्स के माने तो इस चर्चा का दोबारा श्रीगणेश करने ब्रिटेन के व्यापार मंत्री जोनाथन रेनॉल्ड्स की अगुवाई में एक पूरी टीम 24 फरवरी को नई दिल्ली आ रही है। आखिरी बार दोनों देशों के बीच मार्च 2024 में इस विषय पर बातचीत हुई थी। इसके बाद से दोनों देशों के बीच FTA पर बातचीत बंद है।

बता दें कि भारत और ब्रिटेन के बीच FTA पर बातचीत एक महत्वपूर्ण और लंबे समय से चल रहा मुद्दा है। यह समझौता दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देने, आर्थिक सहयोग को मजबूत करने और आर्थिक बढ़ोतरी में एक बड़ा कदम हो सकता है। FTA के माध्यम से, दोनों देशों के बीच व्यापार में होने वाली अलग-अलग बाधाओं को दूर हो सकती है, जिससे सामान, सेवाएं और निवेश आसानी से एक-दूसरे देशों में पहुंच सकता है।

दोनों देशों के बीच FTA का इतिहास

भारत और ब्रिटेन के बीच FTA वार्ता की शुरुआत जनवरी 2022 में हुई थी। यूरोपीय संघ (EU) से बाहर निकलने के बाद, ब्रिटेन ने दुनिया भर के देशों के साथ नए व्यापार समझौतों की दिशा में कदम बढ़ाए थे। इनमें भारत भी एक महत्वपूर्ण साझेदार था, क्योंकि भारत और ब्रिटेन के बीच ऐतिहासिक और व्यापारिक रिश्ते रहे हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए ब्रिटेन और भारत के बीच व्यापार संबंधों को और प्रगति देने के लिए FTA वार्ता शुरू की गई थी।

भारत और ब्रिटेन के बीच FTA वार्ता का मुख्य उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना था। ब्रिटेन ने भारत को एक प्रमुख साझेदार के रूप में देखा था, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। ब्रिटेन ने अपनी आर्थिक नीति में एक नया मोड़ लिया था, और व्यापार समझौतों के माध्यम से दुनिया भर के देशों के साथ संबंधों को विस्तार देने की योजना बनाई थी।

वहीं, भारत के लिए यह एक सुनहरा अवसर था, क्योंकि FTA के माध्यम से भारतीय उत्पादों को ब्रिटेन में बिना किसी शुल्क के निर्यात करने की संभावना बढ़ सकती थी। भारतीय उद्योग, खासकर सर्विस सेक्टर, के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता था। भारत ने यह महसूस किया कि FTA के जरिए ब्रिटेन के साथ व्यापार को बढ़ावा देकर भारत के निर्यात में बढ़ोतरी हो सकती है, और रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।

वार्ता क्यों रुकी थी?

FTA वार्ता के शुरुआत में ही दोनों देशों के बीच विभिन्न मुद्दों पर मतभेद थे। ब्रिटेन ने कुछ मुद्दों को लेकर भारत पर दबाव बनाया था, जबकि भारत अपने आर्थिक हितों को लेकर सावधान था। इन मुद्दों में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट (IPR), मानवीय संपदा और पर्यावरण के नियम, और उत्पादों पर शुल्क के मुद्दे प्रमुख थे। इन विवादों के कारण वार्ता में मतभेद हुआ और कुछ समय के लिए वार्ता को रोक दिया गया।

इसके अलावा ब्रिटेन में आम चुनावों के कारण भी FTA वार्ता में ठहराव आया। जब ब्रिटेन में चुनाव प्रक्रिया पूरी हुई और नई सरकार का गठन हुआ, तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने भारत के साथ FTA वार्ता को फिर से शुरू करने की घोषणा की। इसके बाद, भारत और ब्रिटेन के नेताओं ने इस विषय पर बातचीत की और यह तय किया कि 2025 की शुरुआत में वार्ता को फिर से शुरू किया जाएगा।

FTA वार्ता के क्या हैं बड़े मुद्दे?

भारत और ब्रिटेन ने FTA वार्ता में कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए थे, जिनमें से कुछ प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं:

1. रूल्स ऑफ ओरिजिन (Rules of Origin): ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ यह निर्धारित करते हैं कि किसी उत्पाद का असल देश क्या है। यदि किसी उत्पाद का अधिकांश हिस्सा भारत में बनता है, तो उसे भारतीय उत्पाद के रूप में मान्यता दी जाएगी। ब्रिटेन चाहता था कि ये नियम सख्त हों ताकि अन्य देशों के उत्पादों को गलत तरीके से भारत-ब्रिटेन FTA का फायदा न मिले। भारत ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया और इस बात को सुनिश्चित करने की कोशिश कि यह नियम भारतीय उद्योगों के हित में हों।

2. श्रम और पर्यावरण: ब्रिटेन श्रम और पर्यावरण के मामलों में उच्च मानकों की चाह रखता था। वह चाहता था कि FTA के तहत कुछ श्रमिक अधिकारों और पर्यावरणीय नियमों पर भी समझौता किया जाए। भारत ने इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट की और कहा कि बिना किसी बाध्यकारी प्रतिबद्धता के ‘सर्वोत्तम प्रयास’ पर जोर दिया जाएगा। इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच समझौता करना एक चुनौतीपूर्ण काम था।

3. इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट (IPR): ब्रिटेन ने इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट को लेकर कड़े नियमों की उम्मीद जताई थी, जबकि भारत चाहता था कि इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट के क्षेत्र में कोई ऐसा कदम न उठाया जाए, जो भारतीय कंपनियों के लिए नुकसानकारी हो। यह एक ऐसा मुद्दा था, जिसे हल करने में समय लगा।

4. सर्विस सेक्टर: सर्विस सेक्टर भारत का एक प्रमुख आर्थिक क्षेत्र है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी (IT), स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं। भारत ने ब्रिटेन से इन क्षेत्रों में अधिक अवसरों की उम्मीद जताई है, जबकि ब्रिटेन ने अपने निर्यात के लिए कुछ विशेष क्षेत्रों में शुल्क कम करने की मांग की थी। यह दोनों देशों के बीच वार्ता में एक बड़ा मुद्दा रहा है।

क्यों वार्ता फिर से शुरू हो रही है?

साल 2024 में संपन्न हुए ब्रिटेन में आम चुनावों के बाद, भारत और ब्रिटेन के नेताओं ने इस वार्ता को फिर से शुरू करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने G20 शिखर सम्मेलन के दौरान इस विषय पर चर्चा की थी और यह फैसला लिया था कि 2025 की शुरुआत में FTA वार्ता फिर से शुरू होगी।

FTA से भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हो सकती है। 2024 के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने ब्रिटेन को 7.32 बिलियन डॉलर का निर्यात किया है, जो पिछले साल के मुकाबले 12.38 प्रतिशत अधिक है। साल 2023 में भारत ने 6.51 बिलियन डॉलर का निर्यात किया था। अगर बात द्विपक्षीय व्यापार की करें तो भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार 2022-23 में 20.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023-24 में 21.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

FTA के माध्यम से भारत के व्यापार घाटे में कमी आ सकती है और ब्रिटेन के लिए भी भारतीय बाजार में अवसरों की बढ़ोतरी हो सकती है।

हालांकि, इस समझौते से दोनों देशों को कई लाभ मिल सकते हैं, लेकिन कुछ विवादास्पद मुद्दों का पहले समाधान करना जरूरी होगा। यदि इन मुद्दों को हल कर लिया जाता है, तो FTA की राह दोनों देशों के लिए और आसान होगी और इसका दोनों अर्थव्यवस्थाओं को मिलेगा।

विशेषज्ञों का क्या है मानना?

अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार और इस्टर्न सर्किल की नॉन रेजिडेंट फेलो डॉ. स्वस्ति राव कहती हैं, “भारत FTA पहले भी कई देशों से साइन कर चुका है, लेकिन वर्तमान सरकार ने इस बात पर विशेष ध्यान दिया है कि क्या भारत को FTA से कोई लाभ मिल रहा है? इसमें यह देखा गया कि हम FTA तो साइन कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में भारत को उसका कोई खास फायदा मिल रहा है। पहले जिन देशों से हमारा FTA है, अगर उसमें आप ट्रेड बैलेंस देखेंगे तो यह हमेशा दूसरे देशों के सरप्लस में होता है। मतलब हम उन देशों से ज्यादा आयात करते हैं और निर्यात कम कर पाते हैं। ये भारत के साथ FTA को लेकर एक बड़ी समस्या रही है।”

स्वस्ति आगे कहती हैं, “लेकिन बाद में मोदी सरकार ने उन देशों के साथ FTA पर बातचीत शुरू की, जिनके साथ भारत का ट्रेड सरप्लस होगा। जब से यूक्रेन-रूस युद्ध शुरू हुआ है, उसके बाद से भारत ने यूरोप में दो तीन जगहों से बातचीत शुरू की। EU, EFTA देशों (आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड) और ब्रिटेन के साथ FTA पर बातचीत शुरू की गई। EFTA के साथ हमारी बात बन चुकी है। लेकिन अगर बात करें इंडिया और ब्रिटेन के व्यापार संबंध की, तो यहां दो चीजें हैं जो ब्रिटेन को भारत के लिए महत्वपूर्ण बनाते हैं। पहला बात है कि ब्रिटेन के साथ हमारा ट्रेड गुड और सर्विस में सरप्लस में है। ये इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कई देशों के साथ हम ट्रेड डेफिसिट में हैं। दूसरी बात ये है अभी भारत का जो इकोनॉमिक हेल्थ है, उसमें भारत फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट से नहीं कमा पा रहा है, भारत ज्यादा रेमिटेंस से कमा रहा है। ब्रिटेन उन टॉप चार देशों में शामिल है जहां से भारत को सबसे ज्यादा रेमिटेंस आता है। इससे हम समझते हैं कि क्यों ब्रिटेन भारत के लिए इतना जरूरी है।”

दोनों देश क्या चाहते हैं? इसपर स्वस्ति कहती हैं, “FTA के शर्तों में ब्रिटेन चाहता है कि अगर वह भारत के साथ इसपर साइन करें तो उसे भारतीय बाजार की ज्यादा से ज्यादा पहुंच चाहिए। इसपर दोनों के बीच मतभेद हैं। भारत की मांग है कि हम ये तब करेंगे जब आप हमारे सर्विस के लिए नियमन को और आसान करेंगे। भारत की डिमांड है कि हमारे स्किल प्रोफेशनल, IT सेक्टर,  हेल्थकेयर के लिए ब्रिटेन अपने दरवाजे पूरी तरह से खोलें।”

क्या इस साल हो जाएगा फाइनल?

बीते दो साल से इस मुद्दे पर बातचीत चल रही है, लेकिन इसपर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जा रहा है। स्वस्ति राव का मानना है कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो साल 2025 में भारत और ब्रिटेन के बीच FTA फाइनल हो जाएगा। वह कहती हैं, “भारत और ब्रिटेन के बीच बोरिस जॉनसन के समय यह वार्ता शुरू हुई थी, तब से अब तक चार पीएम वहां बन चुके हैं। हालांकि, FTA को लेकर हर प्रधानमंत्री उत्साहित दिखाई देता था, लेकिन अंतिम निर्णय नहीं हो पाया। वर्तमान सरकार FTA को लेकर खासा उत्साहित दिख रही है। अगर सबकुछ ठीक रहा तो इस साल दोनों देशों के बीच FTA पर अंतिम फैसला तय है। EU पर कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि उसमें 27 देश हैं और सबकी अपनी अपनी महत्वाकांक्षा है, लेकिन ब्रिटेन के साथ इस बार FTA पर अंतिम फैसला होना के पूरे आसार हैं।”

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