कानून और अपराध की रोकधाम
भारत: कुछ मदद, कुछ आत्मबल, लिंग आधारित हिंसा के पीड़ितों को मज़बूती | UNFPA
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विद्या जोशी के दिन की शुरुआत होती है सुबह 6 बजे, कुछ शान्त पलों के साथ. जब दुनिया सो रही होती है, तब वह और उनके पति, भोर से ही पूरे दिन की तैयारी में लग जाते हैं.
विद्या अपने परिवार के लिए भोजन पकाती हैं, जबकि उनके पति बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते हैं. उनका जीवन, दोहरी ज़िम्मेदारियों से भरा हुआ है: एक तरफ़ जहाँ वो एक समर्पित माँ हैं, वहीं दूसरी ओर लिंग आधारित हिंसा के पीड़ितों के लिए एक मज़बूत समर्थक.
उनकी 14 वर्षीय बेटी गार्गी सुबह की भागदौड़ के बीच, आशा भरी आवाज़ में उनसे पूछती है, “माँ, क्या आप जल्दी घर आएँगी ताकि हम स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम की पोशाक के लिए ख़रीदारी करने जा सकें?”
विद्या गार्गी को निराश नहीं करना चाहतीं, अतः वह सिर झुका कर हामी भर देती हैं. हालाँकि उन्हें मालूम है कि आज उनका दिन बहुत व्यस्त रहने वाला है, क्योंकि उन्हें सीकर, राजस्थान में वन स्टॉप सेंटर (OSC) में जाना है.
विद्या सुबह 10 बजे कार्यालय पहुँचती हैं. OSC लिंग आधारित हिंसा के पीड़ितों के लिए एक सुरक्षित स्थान है, वह मानो उनका दूसरा घर है.
ग्रिल वाले गेट के पीछे एक टीम कार्यरत है, जो पीड़ितों को आश्रय, परामर्श, दयालु देखभाल, और चिकित्सा व क़ानूनी सहायता प्रदान करती है. इस केन्द्र की व्यवस्थापक और OSC की संचालन रीढ़, विद्या, हमेशा कार्रवाई के लिए तैयार रहती हैं.
विद्या बताती हैं, “हमें इस तरह काम बाँटा गया है कि दिन हो या रात, किसी भी पीड़ित की अनदेखी न हो. कभी भी आपात स्थिति हो सकती है, और मुझे हर समय उपलब्ध रहना पड़ता है.”
उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. वह कहती हैं, “असल में, यह दिन-रात, सातों दिन यानि 24×7 चलने वाला काम है.”
आज का दिन एक युवा महिला के आगमन से शुरू हुआ, जो अपने बच्चे और माँ के साथ केन्द्र में आई है. माँ अपनी बेटी की ओर इशारा करते हुए कहती है, “इसका पति लगातार इसे दहेज के लिए परेशान कर रहा है.”
विद्या धैर्यपूर्वक उनकी बात सुनती हैं और काउंसलर से कहती हैं कि वह उस युवा महिला का बयान दर्ज कर ले.
विद्या यह परामर्श ख़त्म करके खड़ी हुई ही थीं कि उन्हें एक 16 वर्षीय लड़की की सिसकियाँ सुनाई देती हैं. यह लड़की अपने नवजात शिशु को गोद में लिए बैठी है. विद्या उसके पास जाकर बैठ जाती हैं, और लड़की के कमज़ोर शरीर को अपनी बाहों में समेटकर ढाँढस बँधाती हैं. लड़की बताती है कि वह घर वापस नहीं जाना चाहती. उसका बयान 12 बजे तक दर्ज होना है, और अभी 11 बज चुके हैं.
यह बयान मजिस्ट्रेट, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत रिकॉर्ड करते हैं, जो जाँच के दौरान स्वीकारोक्ति रिकॉर्ड करने का क़ानूनी प्रावधान है.
सौभाग्य से, क़ानूनी परामर्शदाता मधु जल्दी ही आने वाली हैं ताकि लड़की को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जा सके. यह महत्वपूर्ण क़दम, लड़की को क़ानूनी न्याय दिलाने का रास्ता दिखाएगा.
UNFPA का समर्थन
इस केन्द्र को करुणा व व्यवस्थित तरीक़े से संचालित करने की विद्या की इन क्षमताओं को, UNFPA के प्रशिक्षण से अपूर्व बल मिला है. परामर्श कौशल लिंग आधारित हिंसा (GBV) केस प्रबन्धन, मानसिक स्वास्थ्य एवं मनोवैज्ञानिक समर्थन सेवाओं, और प्रासंगिक कानूनों पर कार्यशालाओं से उन्हें पीड़ित-केन्द्रित देखभाल प्रदान करने के लिए आवश्यक कौशल हासिल हुआ है.
विद्या उस युवती माँ का हाथ पकड़े हुए उसकी मदद कर रहीं हैं, तभी उनका फ़ोन बजने लगता है. वह फ़ोन उठाती हैं, दूसरी तरफ़ कॉल में एक अन्य युवती की घबराई हुई आवाज़ सुनाई देती है. “वह मुझे लगातार परेशान कर रहा है, और धमकी दे रहा है कि वह मेरी तस्वीरें ऑनलाइन पोस्ट कर देगा.”
वो मदद की गुहार लगाते हुए कहती है, “कृपया, इस नम्बर पर कॉल करके, उसे ऐसा करने से रोक लें.”
181 हेल्पलाइन पर उसकी बात सुनते हुए विद्या उसे आश्वस्त करती हैं कि वो लड़के से बात करेंगी. यह निशुल्क लाइफ़ लाइन, लिंग आधारित हिंसा का सामना कर रही महिलाओं और लड़कियों के लिए समर्थन का अहम साधन बन चुकी है.
विद्या बताती हैं, “साइबर अपराध से सम्बन्धित मामलों में बहुत वृद्धि हो रही है.” केन्द्र के सामने कई ऐसे मामले आए हैं, जहाँ लड़के रिश्ते समाप्त करने पर, संवेदनशील तस्वीरें सोशल मीडिया पर लीक करने की धमकी देते हैं.
विद्या का OSC, पुलिस, स्वास्थ्य विभाग, और महिला एवं बाल विकास विभाग की मदद से, सफलतापूर्वक इन जटिल चुनौतियों का सामना करते हुए, पीड़ितों को अपने जीवन के पुनः निर्माण में सक्षम बनाता है.
वर्ष 2021 में WHO द्वारा चलाए गए महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा (VAW) संस्थागत सर्वेक्षण में, सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले केन्द्रों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त उनका OSC, उनके असाधारण नेतृत्व का प्रमाण है.
बातचीत के दौरान, विद्या का फोन फिर से बज उठता है. यह गार्गी का कॉल है, जो ख़रीदारी के अधूरे वादे से निराश है. विद्या उसे आश्वस्त करती हैं कि वे अगले दिन उसके साथ ज़रूर जाएँगी. कॉल ख़त्म होने के बाद वह सोच में पड़ जाती हैं, “मैं यह सब उसे किस तरह समझाऊँ?”
उस लड़के को फ़ोन किया जाना अभी बाक़ी है, जिसने लड़की को ऑनलाइन दुर्व्यवहार की धमकी दी है — यानि काम अभी पूरा नहीं हुआ है….
विद्या, घर एवं कामकाज, दोनों पहलुओं के बीच सन्तुलन बनाते हुए काम करती हैं. दोनों ही किरदारों में वो किसी हीरो से कम नहीं हैं. वह प्रतिदिन घरेलू ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ, जटिल क़ानूनी एवं भावनात्मक चुनौतियों का भी सामना करती हैं.
उनकी कहानी उन असाधारण महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है, जो अपने सम्पूर्ण जीवन को बदलाव लाने के लिए समर्पित कर देती हैं.
यह कहानी पहले यहाँ प्रकाशित हुई,
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कानून और अपराध की रोकधाम
लेबनान: इसराइल का ‘सीमित’ ज़मीनी सैन्य अभियान शुरू, यूएन की 42 करोड़ डॉलर की सहायता अपील
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1 month agoon
October 1, 2024 [ad_1]
ग़ाज़ा में इसराइली युद्ध की पृष्ठभूमि में भारी संख्या में लोगों का विस्थापन, इसराइल और लेबनान स्थित सशस्त्र गुट हिज़बुल्लाह के बीच हाल के समय में युद्ध में आई तेज़ी के मद्देनज़र हो रहा है. हिज़बुल्ला के लम्बे समय से नेता रहे हसन नसरल्लाह, शुक्रवार को एक इसराइली हमले में मारे गए हैं.
इसराइली सैन्य बलों ने कहा है कि इसराइल और लेबनान को अलग करने वाली ‘ब्लू लाइन’ सीमा के पार, सीमित स्तर पर लक्षित ढंग से एक ज़मीनी अभियान शुरू किया गया है. संयुक्त राष्ट्र मिशन द्वारा इस सीमा रेखा की निगरानी की जाती है.
यूएन मानवतावादी कार्यालय (OCHA) के प्रवक्ता येन्स लार्क ने बताया कि लेबनान में हालात अस्तव्यस्त हैं और हवाई हमलों से बचने के लिए भाग रहे हैं. इसराइली कार्रवाई में पिछले दो सप्ताह में अब तक एक हज़ार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 10 लाख से अधिक विस्थापित हुए हैं.
यूएन कार्यालय प्रवक्ता ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि अभी और अधिक संख्या में लोगों के विस्थापित होने की आशंका है. ज़रूरतमन्दों तक सहायता पहुँचाने के लिए पर्याप्त मात्रा में ना तो फ़िलहाल आपूर्ति है और ना ही क्षमता है.
इसके मद्देनज़र, यूएन ने मंगलवार को 42 करोड़ डॉलर की यह अपील जारी की है ताकि जल्द से जल्द सहायता अभियान का दायरा व स्तर बढ़ाया जा सके.
यूएन मिशन मुस्तैद
लेबनान में यूएन अन्तरिम बल (UNIFIL) ने बताया कि इसराइल द्वारा सीमित स्तर पर ज़मीनी अभियान शुरू किए जाने के बारे में उन्हें सूचित किया गया है.
UNIFIL की ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि “यह एक बेहद ख़तरनाक स्थिति है मगर शान्तिरक्षक अपनी तैनाती स्थलों पर बने हुए हैं.”
यूएन मिशन द्वारा गतिविधियों में नियमित रूप से बदलाव किया जा रहा है और आपात स्थिति के लिए योजनाओं को भी तैयार किया गया है. “शान्तिरक्षकों का बचाव व सुरक्षा सर्वोपरि है और सभी पक्षों को ध्यान दिलाया गया है कि उन्हें अपने दायित्वों का सम्मान करना होगा.”
लेबनान में यूएन मिशन में 50 से अधिक देशों के 10 हज़ार से अधिक शान्तिरक्षक हैं, और हम महीने सीमा पर ग़श्त लगाने समेत 14 हज़ार से अधिक गतिविधियों को पूरा किया जाता है.
मिशन ने सभी पक्षों से आग्रह किया है कि तनाव व टकराव को बढ़ाने वाले ऐसे क़दमों से पीछे हटना होगा, जिससे केवल हिंसा व रक्तपात हो.
मध्य पूर्व, बारूद के ढेर पर
इस बीच, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने आगाह किया है कि मध्य पूर्व में बढ़ता तनाव, पूरे क्षेत्र को अपने लपेटे में ले सकता है जोकि मानवाधिकार और मानवतवादी नज़रिये से तबाही भरी स्थिति होगी.
“बड़ी संख्या में मासूम बच्चे, महिलाएँ और पुरुष मारे जा रहे हैं और बहुत अधिक विध्वंस को अंजाम दिया गया है.” लेबनान में अब तक 10 लाख से अधिक लोग जबरन विस्थापन का शिकार हुए हैं.
हिज़बुल्लाह द्वारा निरन्तर उत्तरी इसराइल पर रॉकेट हमले किए गए हैं, जिससे क़रीब 60 हज़ार से अधिक विस्थापित हैं.
मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार, सभी पक्षों को सैन्य ठिकानों व आम नागरिकों व नागरिक प्रतिष्ठानों के बीच स्पष्टता से भेद करना होगा. साथ ही, आम नागरिकों, उनके घरों और बुनियादी ढाँचे की रक्षा के लिए अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून का पालन किया जाना होगा.
ग़ाज़ा में हालात जस के तस
उधर, ग़ाज़ा पट्टी में युद्ध के कारण आम फ़लस्तीनी बेहद पीड़ा से गुज़र रहा है. 7 अक्टूबर को इसराइल पर हमास व अन्य गुटों के आतंकी हमलों के बाद, इसराइली सेना की जवाबी कार्रवाई पिछले एक साल से जारी है.
फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) ने बताया कि ग़ाज़ा में आम नागरिकों को विशाल स्तर पर ज़रूरतें हैं.
यूएन एजेंसी की प्रवक्ता लुइस वॉटरिज ने बताया कि वहाँ लोगों को महसूस होता है कि उन्हें भुला दिया गया है और ये भी कि उनकी ज़रूरतें अन्य लोगों जितनी महत्वपूर्ण नहीं हैं. इतने तबाही भरे माहौल में उनकी आवश्यकताएँ बेहद बुनियादी हैं, भोजन, जल व आश्रय. मगर वे भी नज़रअन्दाज़ की जा रही हैं.
ग़ाज़ा में युद्ध के कारण 19 लाख फ़लस्तीनी विस्थापित हुए हैं, 41 हज़ार अब तक मारे जा चुके हैं. यूएन एजेंसी प्रवक्ता ने कहा कि ग़ाज़ा पट्टी में 63 प्रतिशत इमारतें ध्वस्त या क्षतिग्रस्त हुई हैं. मगर, पिछले 12 महीनों में स्थानीय लोगों ने जिस भयावह स्थिति का सामना किया है, उसे बयाँ नहीं किया जा सकता है.
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कानून और अपराध की रोकधाम
अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) क्या है?
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2 months agoon
September 29, 2024 [ad_1]
वर्ष 2002 में स्थापित और नैदरलैंड्स की राजधानी द हेग में स्थित, आईसीसी एक आपराधिक न्यायालय है, जिसमें व्यक्तियों पर युद्ध अपराधों व मानवता के विरुद्ध अपराध मामलों में मुक़दमा चलाया जा सकता है.
सोमवार को, आईसीसी ने इसराइली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतनयाहू, प्रतिरक्षा मंत्री योआव गैलान्ट और हमास के तीन नेताओं के विरुद्ध गिरफ़्तार वॉरन्ट जारी किए जाने का अनुरोध किया है.
ये वॉरन्ट, इसराइल में हमास के नेतृत्व में किए गए हमलों और उसके बाद, पिछले सात महीनों से ग़ाज़ा में इसराइली सैन्य कार्रवाई से जुड़े मामलों में है. इन वॉरन्ट को आईसीसी न्यायाधीशों द्वारा औपचारिक स्वीकृति दी जा सकती है.
एक नज़र, आईसीसी से जुड़े पाँच अहम तथ्यों पर, और साथ ही जानते हैं कि एक अधिक न्यायसंगत विश्व को आकार देने में यह कोर्ट अपनी भूमिका किस प्रकार से निभा रही है.
1) जघन्यतम अपराधों के मुक़दमे चलाना
आईसीसी को उन “लाखों बच्चों, महिलाओं और पुरुषों” को ध्यान में रखकर बनाया गया था, जो “मानवता की अन्तरात्मा को झकझोर देने वाले अकल्पनीय अत्याचारों के शिकार हुए थे.”
आईसीसी विश्व की पहली स्थाई, सन्धि-आधारित अदालत है, जिसका दायित्व मानवता के विरुद्ध अपराधों, युद्ध अपराधों, जनसंहार व आक्रामकतापूर्ण अपराधों के दोषियों की जाँच करना व उन पर मुक़दमा चलाना है.
इस कोर्ट ने पूर्व यूगोस्लाविया के स्रेब्रेनीत्सा समेत अन्य इलाक़ों में अंजाम दिए गए युद्ध अपराध मामलों में सफलतापूर्वक दोष सिद्ध किए और अन्तरराष्ट्रीय न्याय से जुड़े कई अहम मामलों का निपटारा किया है.
इनमें, बाल-सैनिकों का इस्तेमाल, सांस्कृतिक विरासत का विध्वंस, यौन हिंसा, या निर्दोष नागरिकों पर हमलों समेत अनेक अन्य मामले हैं. आईसीसी ने विश्व में कुछ सबसे गम्भीर हिंसक टकरावों की जाँच की है, जिनमें दारफ़ूर, काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य, ग़ाज़ा, जॉर्जिया व यूक्रेन समेत अन्य मामले हैं.
अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में सार्वजनिक सुनवाई की जाती है, 31 मामलों की प्रक्रिया चल रही है, और इसकी वॉरन्ट सूची में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के अलावा, लीबिया के कुछ व्यक्ति भी हैं.
मगर, एक वॉरन्ट को जारी करना और फिर संदिग्धों को पकड़ा जाना चुनौतीपूर्ण है. कोर्ट के पास अपने वॉरन्ट पर अमल के लिए पुलिस नहीं है और अक्सर आदेश को लागू करने के लिए उसे सदस्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता है.
अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा दोषी क़रार दिए गए अधिकाँश व्यक्ति अफ़्रीकी देशों से हैं.
2) पीड़ितों को शामिल करना
यदि किसी दिन आप आईसीसी में अदालती प्रक्रिया को देखें, तो आपको गवाहों या पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों की आवाज़ सुनाई देगी. न्यायिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए उनकी बात सुना जाना ज़रूरी है.
न्यायालय ना केवल सबसे जघन्य अपराधों के लिये ज़िम्मेदार लोगों को दंडित करने का प्रयास करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि पीड़ितों की आवाज़ सुनी जाएँ. पीड़ित वे व्यक्ति हैं, जिन्हें न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में किसी भी अपराध के परिणामस्वरूप पीड़ा पहुँची हो.
ये पीड़ित, आईसीसी की न्यायिक कार्यवाही के सभी चरणों में भाग लेते हैं. अत्याचार सम्बन्धी अपराधों में 10 हज़ार से अधिक पीड़ित, इस न्यायालय की कार्यवाही में भाग ले चुके हैं. आपराधिक न्यायालय, अपने सम्पर्क व पहुँच कार्यक्रमों के माध्यम से, अपने अधिकार क्षेत्र में अपराधों से प्रभावित समुदायों के साथ सीधे सम्पर्क बनाए रखता है.
न्यायालय, पीड़ितों एवं गवाहों की सुरक्षा और शारीरिक व मनोवैज्ञानिक अखंडता की रक्षा करने के लिए भी प्रयासरत है. हालाँकि पीड़ित व्यक्ति यहाँ सीधे अपने मामले लेकर नहीं आ सकते हैं, लेकिन वे अभियोजक को जानकारी दे सकते हैं, जो यह तय करते हैं कि कोई मामला जाँच के योग्य है या नहीं.
वर्तमान में, पीड़ितों के लिए स्थापित ICC ट्रस्ट कोष, न्यायालय द्वारा क्षतिपूर्ति सम्बन्धी पहले आदेशों को वास्तविकता में बदलने में जुटा है. इनमें काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य में पीड़ितों व उनके परिवारों के लिए मुआवज़े की मांग भी है.
इस कोष ने अपने सहायता कार्यक्रमों के माध्यम से साढ़े चार लाख से अधिक पीड़ितों को शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक-आर्थिक सहायता भी प्रदान की है.
3) निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना
आईसीसी के समक्ष, सन्देह से परे दोष साबित होने तक सभी प्रतिवादियों को निर्दोष माना जाता है. सभी प्रतिवादी सार्वजनिक और निष्पक्ष कार्यवाही के हक़दार होते हैं.
आईसीसी में, संदिग्धों और अभियुक्तों के पास महत्वपूर्ण अधिकार होते हैं, जिनमें: आरोपों के बारे में जानकारी पाने; अपना बचाव तैयार करने के लिये पर्याप्त समय मिलने; बिना किसी देरी के मुक़दमा चलाए जाने; स्वतंत्र रूप से वकील का चुनाव करने; अभियोजक से दोषमुक्ति सम्बन्धी साक्ष्य प्राप्त करना आदि शामिल है.
इन अधिकारों में से एक है – उस भाषा में कार्यवाही करने का अधिकार, जो अभियुक्त को पूरी तरह समझ में आती हो. इसके मद्देनज़र, अदालत ने 40 से अधिक भाषाओं में विशेष दुभाषियों व अनुवादकों को भर्ती किया है, और कभी-कभी एक ही सुनवाई के दौरान एक साथ चार भाषाओं का इस्तेमाल किया जाता है.
अपने पहले 20 वर्षों में, प्रतिभागियों को अपराध स्थलों से मीलों दूर, नई व्यवस्था, प्रक्रियात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इसके अलावा, ICC द्वारा अभियोजित अपराध एक विशिष्ट प्रकृति के होते हैं, जिन्हें अक्सर बड़े पैमाने पर अंजाम दिया जाता है.
इसके लिए बड़े पैमाने पर साक्ष्यों की ज़रूरत होती है, और गवाहों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जानी अहम है. अदालती कार्यवाही जटिल है और ऐसे अनेक विषय हैं जिन्हें सुनवाई के दौरान पर्दे के पीछे हल करने की आवश्यकता पड़ती है.
4) राष्ट्रीय अदालतों की पूरक व्यवस्था
यह न्यायालय, राष्ट्रीय न्यायालयों की जगह नहीं लेता. यह केवल न्याय के अन्तिम उपाय के रूप में काम करता है. सबसे गम्भीर अपराधों को अंजाम देने वालों की जाँच करने और उन्हें दंडित करने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी देशों की ही होती है.
आईसीसी द्वारा केवल तभी क़दम उठाया सकता है, जब किसी देश में न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के तहत जघन्य अपराध हुआ हो, मगर वो क़दम उठाने के लिये अनिच्छुक हो या असल में उसका निपटारा करने में असमर्थ हो.
दुनिया भर में गम्भीर हिंसा तेज़ी से बढ़ रही है. न्यायालय के पास सीमित संसाधन हैं और यह एक समय में बहुत कम मामले ही निपटा सकता है. यह न्यायालय, राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय न्यायाधिकरणों के साथ मिलकर काम करता है.
5) न्याय के लिये अधिक सहयोग जुटाना
सभी महाद्वीपों के 123 देशों के समर्थन से, आईसीसी ने स्वयं को एक स्थाई व स्वतंत्र न्यायिक संस्था के रूप में स्थापित किया है. लेकिन राष्ट्रीय न्यायिक प्रणाली के विपरती, इस न्यायालय के पास अपनी पुलिस नहीं है.
इस वजह से, कोर्ट को अपने गिरफ़्तारी वॉरंट या सम्मन लागू करने जैसे कार्यों के लिये देशों के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ता है.
और ना ही, कोर्ट के पास ऐसा कोई क्षेत्र है, जहाँ ग़वाहों को उनकी सुरक्षा के मद्देनज़र भेजा जा सकता हो. इस वजह से कोर्ट, काफ़ी हद तक, देशों के समर्थन व सहयोग पर ही निर्भर है.
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कानून और अपराध की रोकधाम
हेती में गैंग हिंसा के कारण लाखों लोग भूखे पेट रहने को मजबूर
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2 months agoon
September 29, 2024 [ad_1]
संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम – WFP का कहना है कि देश में इस समय लगभग 50 लाख लोग, खाद्य अभाव की अति गम्भीर स्थिति का सामना कर रहे हैं.
देश में WFP के निदेशक जियाँ मार्टिन बुएर ने, न्यूयॉर्क मुख्यालय में मौजूद पत्रकारों को वीडियो लिंक के ज़रिए सम्बोधित करते हुए बताया कि इनमें से लगभग 16 लाख लोगों को, आपात खाद्य असुरक्षा के हालात का सामना करने वालों के रूप में परिभाषित किया गया है.
उन्होंने कहा, “यह अभी तक की रिकॉर्ड उच्च संख्या है. वर्ष 2010 के बाद, इस स्तर की खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाले लोगों की ये सबसे बड़ी संख्या है.”
विस्थापितों को भरपेट भोजन
जियाँ मार्टिन बुएर का ये प्रैस सम्बोधन ऐसे दिन हुआ जब, कुछ ही देर पहले, WFP और FAO सहित संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों ने, दुनिया भर में खाद्य अभाव की अति गम्भीर स्थिति का सामना करने वाले स्थानों के बारे में अपनी नवीनतम रिपोर्ट जारी की थी. इनमें ग़ाज़ा, सूडान और हेती के नाम भी शामिल हैं.
जियाँ मार्टिन बुएर ये प्रैस वार्ता हेती की राजधानी पोर्ट ओ प्रिंस में स्थित एक ऐसे सामुदायिक किचन से की, जिसे WFP चला रहा है और जहाँ से उन लोगों को ताज़ा भोजन की ख़ुराकें मुहैया कराई जाती हैं, जो गैंग हिंसा, लगातार असुरक्षा और मानवाधिकार उल्लंघन के कारण विस्थापित हैं. इन घटनाओं ने हाल के वर्षों में देश को झकझोर दिया है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने, हेती की राष्ट्रीय पुलिस की मदद करने के लिए, एक बहुराष्ट्रीय सुरक्षा समर्थन मिशन की तैनाती को मंज़ूरी दी है, अलबत्ता ये मिशन अभी तैनाती के लिए तैयारी की अवस्था में है.
हवाई अड्डा ठप
इस कैरीबियाई देश में स्थिति, इस वर्ष मार्च के आरम्भ में उस समय और भी बिगड़ गई थी जब अपराधी गुटों ने राजधानी पर अपनी पकड़ मज़बूत कर ली थी. इस दौरान उन्होंने पुलिस थानों और अन्य महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों पर समन्वित हमले किए थे, और जेलों को तोडड़कर हज़ारों क़ैदियों को रिहा करा लिया था.
विमान उड़ानें ठप हो गई थीं और प्रधानमंत्री एरियल हैनरी ने इस्तीफ़ा दे दिया था.
जियाँ मार्टिन बुएर ने पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हुए कहा कि हिंसा को देखते हुए इस समय सुरक्षा, “बिल्कुल पहली प्राथमिकता” है क्योंकि हिंसा ने लोगों के लिए बहुत बड़ा ख़तरा पैदा कर दिया है. देश के लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं ले जा सकते, ख़ुद सामान की ख़रीदारी करने के लिए नहीं जा सकते, और यहाँ तक कि प्रार्थना के लिए चर्च भी नहीं जा सकते.
जियाँ मार्टिन बुएर ने अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन एजेंसी – IOM के आँकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि हेती में गैंग हिंसा ने, लगभग तीन लाख 60 हज़ार लोगों को उनके घरों से बेदख़ल कर दिया है. राजधानी में केवल मार्च में ही, एक लाख से अधिक लोग बाहर चले गए थे.
जियाँ मार्टिन बुएर ने, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से हेती की मदद करने के लिए क़दम तेज़ करने का आग्रह किया क्योंकि देश की मदद के लिए गत फ़रवरी में जारी की गई 67.4 करोड़ डॉलर की सहायता अपील के जवाब में, केवल 22 प्रतिशत राशि ही प्राप्त हुई है.
WFP को भी देश में लोगों के लिए जीवनरक्षक सहायता कार्यक्रम चलाने की ख़ातिर 7.6 करोड़ डॉलर की रक़म की ज़रूरत है.
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